मारा घट माँ विराजत
टेर
मारा घाट माँ विराजत श्रीनाथजी यमुना जी महाप्रभुजी
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मारो मनड़ो छे गोकुल वृन्दावन वृन्दावन
मारा तनना आंगनियाँ माँ तुलसी रा वन म्हारा प्राण जीवन || १ || -
मारे आत्मा आंगड़े श्री महा कृष्ण जी
मारी आँखों विशे गिरधारी मारो तन मन गया लेने वारि || २ || -
मारा प्राण थकी मने वैष्णव वाला वाला
नित करता श्री नाथजी ने वाला रे वाला
मैं प्रभुजी ना किया छे दर्शन मारो मोह लियो मन || ३ || -
मैं तो नित्य विट्ठल वर्णी सेवा रे करु
हु तो आठो शमा केरी झांकी रे करू
हु तो चित्तड़ो श्री नाथ जी रे चरण धरु जीवन सफल करू || ४ || -
मारे अंत समय केरी सुणो रे अर्जी
ले लो श्री जी बाबा शरण में दया रे करि
मन तदात्वे याम कैरो कदी न आवे, मारो नाथ तड़ावे || ५ ||