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जन्म इक राजा के पायो

  • जन्म इक राजा के पायो, नाम तेरा ध्रुवजी धरवाया।
    वचन माता का सुन पाया, मन के क्रोध उपजाया।
    काम क्रोध सब छोड़ के ध्रुवजी गए वनवास।
    राजा जी हलकारो भेज्यो ध्रुव ने ल्यायो बुलाय।
    छोड़ दियो सब घर का धंधा, भजो मन राधे गोविंदा।
    कटे लाख चौरासी फंदा, भजो मन राधे गोविंदा।
    भजन से तीर जासी से बन्दा। भजो मन। ….

  • पिताजी ध्रुव ने बुलवाया, ध्रुवजी जल्दी से आया।
    थे सुणो लाल हांसी नहीं, बड़ो कठिन वनवास।
    सात बरस का हो जाओ ध्रुवजी जड़ जाओ वनवास।
    उम्र थांरी बाली रे गोविंदा। भजन से तीर। ….

  • ऐक बन उँगलियों, दूजा बन में जाय
    तीजा में नारद जी मिल गया, कंठा लिया लगाय।
    शीश चरना में धर दीना, हाथ मस्तक पर रख दीना।
    कटे लख चौरासी। .....

  • हे पुत्र हांसी नहीं बड़ो कठिन वनवास।
    सात बरस का हो जाओ ध्रुव जी जड़ जाओ वनवास।
    सहाय थांकी करसि रे गोविंदा।

  • जमुनाजी के तीर पर आसान दियो बिछाय।
    इंद्रा को इन्द्रासन कांपो, लक्ष्मी करे पुकार।
    सुओ तुम लक्ष्मी के कान्त।

  • इंद्र गज हस्ती चढ़ गए, सूद में गहरा लिपटायो।
    इंद्रा तो पाछा फिर्या सुणो प्रभुजी म्हारी।
    ओ बालक डरने का नांहि, गहरा धारिया ध्यान।
    ध्यान धरने का यही फंदा।

  • महार कर नारायण आया, ध्रुवजी ने सिंहासन बैठाया
    मुकुट सिर ध्रुवजी के धारिया, तिलक विप्रा से करवाया
    ध्रुवजी चरना में गिरया।

  • ध्रुवजी सिंहासन बैठ कर अटल राज कीना
    पड़ी भूमि को कर नहीं लीनो ऐसा ध्रुव महाराज
    राज बड़ा नेकी से कीना || भजो रे मन। ….