माने गुरूसा मिलवा
टेर
माने गुरूसा मिलवा को लागो कोढ उम्मेदी गहरी लाग रही
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मोहे उम्मेदी ऐसी लागि निरधनियाँ धन होय
बाँझ नार पुत्र बिन तरसे, मैं तरसु गुरु ज्ञान ||१ || -
सतगुरु मारा सायर है, रे मैं गालिया रो नीर
एक बूँद सागर मैं मिलगी, कंचन भयो रे शरीर || २ || -
जग रूठे तो रूठन दे मारा सतगुरु रूठे नांहि
जो म्हारा सतगुरु सन्मुख वे तो म्हाने मिलावे राम || ३ || -
जहाज पड़ी दरियाव मेरे अध्वीच गोता खाय
जै म्हारा सतगुरु खेवटिया रे, कर देला भव जल पार || ४ || -
गुरु गहरा गुरु भाव रे, गुरु देव रा देव
धार्मिदास ने सतगुरु मिलिया, पायो है केवल ज्ञान || ५ ||