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इठलाती हुई बल खाती हुई

टेर

इठलाती हुई बलखाती हुई चली पनिया भरण शिव नार रे सागर पे उतरी गगरिया

  • रूप देव सागर ने पूछा कोण पित महतारी कोण देश की रहने वाली कौण पुरुष की नारी ओ गिरिजा कोण पुरुष की नारी
    होले होले गोरा बोले जैसे छाया रूप अपार रे
    सागर। ..... इठलाती। …. || १ ||

  • राजा हिमजल पिता हमारे मैनावती महतारी शिव शंकर है पति हमारे मैं हु उनकी नारी समुन्दर में हु उनकी नारी
    जल ले जाऊ भोले को नेहलाउ सुनले वचन हमारा रे
    सागर। ..... इठलाती। …. || २ ||

  • हमें समंदर छोड़ भोले को वो मांग भाग के खाये चौदह रतन भरे हैं मुझमे तो बैठी मौज उड़ाय ओ गिरिजा बैठी मौज उड़ाय
    वो पीवे भंगिया वो नव रंगिया क्यों सहती कष्ट अपार रे
    सागर। ..... इठलाती। …. || ३ ||

  • क्रोधित होकर चली गिरिजा आई भोले के पास तुम्हारे होते ताके समंदर सारी कथा सुनाई ओ भोले साड़ी कथा सुनाई
    शिव कियो है जतन सागर को मंथन लियो चौदह रतन निकाल रे
    सागर। ..... इठलाती। …. || ४ ||