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कलियुग बैठा मार कुंडली

टेर

कलयुग बैठा मार कुंडली जाऊं तो कहाँ जाऊं
अब हर घर में रावण बैठा इतने राम कहाँ से लाऊँ

  • हो दशरथ कौशल्या जैसे मात पिता अब भी मिल जाए
    पर राम सा पुत्र मिले ना जो आशा लवण जाय
    भारत लखन से भाई को मैं धुंध कहाँ से अब लाऊँ || १ ||

  • जिसे समझते हो अपना तुम झड़े खोदता आज वही
    रामायण की बातें जैसे लगती है सपना कोई
    तब थी दासी एक मंत्र आज घर घर पाऊं || २ ||

  • आज दास प्रेम बना है मालिक से तकरार करे
    सेवा भाग तो दूर रहा वो वक्त पड़े तो वार करे
    हनुमान सा दास आज मैं धुंध कहाँ अब लाऊँ || ३ ||

  • रोंद रहे बगिया को देखो खुद ही उसके रखवाले
    अपने घर की नींव खोदते देखे मैंने घरवाले
    तब था घर का एक ही भेदी आज वही हर घर पाऊं || ४ ||