Skip to main content

हरी की वाणी

टेर

हरी की वाणी बोल बोल कागा मेरा तो मन राम से लागा
आया तो एक रेण का सपना जगत में कोई नहीं अपना

  • नीत उड़ बाग़ में जाती झोली तो भर फूल की लाती
    आधा तो सुख सेज में रखती आधा तो मेरे श्याम को देती || १ ||

  • टूटी तो एक आम की डाली रोवे एक बाग़ का माली
    तू क्यों रोवे बाग़ का माली मेरे जैसा सात है भाई
    टुटा तो एक दाल का पत्ता फूटा एक नीर का घड़ा || २ ||

  • बाग़ में गम रया हाथी जीव तेरे संग नहीं चले साथी
    बाग़ में गम रही मकड़ी जीव तेरे संग चले ला लकड़ी || ३ ||