Skip to main content

किया भरम सब दूर

दोहा

गुरु गोविन्द दोनों खडे ,का के लागु पांव।
बलिहारी गुरुदेव आपने ,गोविन्द दियो बताय।

किया भरम सब दूर

  • बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
    किया भरम सब दूर।
    किया भरम सब दूर मेरा,
    किया भरम सब दूर।
    बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
    किया भरम सब दूर।

  • प्याला पाया प्रेम का ,
    घोल संजीवन मूल।
    चढ़ी खुमारी प्रेम की रे,
    मन हो गया चकनाचूर।
    बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
    किया भरम सब दूर।

  • कुमता घटी और सुमता बढ़ी,
    उर आनन्द भयो भरपूर।
    राग द्वेष जगत की मेटी,
    अब मन भयो मंजूर।
    बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
    किया भरम सब दूर।

  • विमल होय प्रकाश लिखायो,
    बना शशि बना सूर।
    मनवो मस्त रेवे अनहद में,
    सुन के आनंद तूर।
    बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
    किया भरम सब दूर।

  • शबद सुण्या गुरुदेवजी रा,
    मुख सु पड गई धूड़।
    धर्मिदास को आय मिल्या,
    सतगुरु श्याम हुजूर।
    बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
    किया भरम सब दूर।

  • बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
    किया भरम सब दूर।
    किया भरम सब दूर मेरा,
    किया भरम सब दूर।
    बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
    किया भरम सब दूर।