किया भरम सब दूर
गुरु गोविन्द दोनों खडे ,का के लागु पांव।
बलिहारी गुरुदेव आपने ,गोविन्द दियो बताय।
किया भरम सब दूर
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बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
किया भरम सब दूर।
किया भरम सब दूर मेरा,
किया भरम सब दूर।
बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
किया भरम सब दूर। -
प्याला पाया प्रेम का ,
घोल संजीवन मूल।
चढ़ी खुमारी प्रेम की रे,
मन हो गया चकनाचूर।
बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
क िया भरम सब दूर। -
कुमता घटी और सुमता बढ़ी,
उर आनन्द भयो भरपूर।
राग द्वेष जगत की मेटी,
अब मन भयो मंजूर।
बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
किया भरम सब दूर। -
विमल होय प्रकाश लिखायो,
बना शशि बना सूर।
मनवो मस्त रेवे अनहद में,
सुन के आनंद तूर।
बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
किया भरम सब दूर। -
शबद सुण्या गुरुदेवजी रा,
मुख सु पड गई धूड़।
धर्मिदास को आय मिल्या,
सतगुरु श्याम हुजूर।
बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
किया भरम सब दूर। -
बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
किया भरम सब दूर।
किया भरम सब दूर मेरा,
किया भरम सब दूर।
बलिहारी जाऊं मारा सतगुरु ने,
किया भरम सब दूर।