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अपना घर

“ बेटी आज से तेरा घर, तेरा ससुराल है। “

कर्म की गति कैसी न्यारी है, जिस मां ने इकलौती बेटी को उच्च संस्कार और अच्छी शिक्षा देकर पाला पोषा, उसी की शादी के समय दुर्घटना हो जाने की वजह से उसे हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ा, तब माँ-बेटी के दिल पर जो बीत रही थी उसे देखकर तो अच्छों-अच्छों के दिल भी पीहर जाएं। शादी कर रस्मों रीति पूरी होने पर बेटी अपने पति को साथ लेकर हॉस्पिटल में माँ से आशीर्वाद लेने आई। तब माँ ने बड़े प्यार से बेटी व दामाद को आशीर्वाद दिया और लेन-देन का औपचारिक व्यवहार निपटाया। बेटी बोझिल ह्रदय से माँ के गले से लगकर रोने लगी। तब माँ ने बेटी को अपने पास बिठाया और स्वस्थता से उसे सांत्वना दी।

माँ ने अपने ह्रदय में उमड़ते आवेग को अंदर ही दबाकर बेटी को सही सलाह दी, बेटी आज से तेरा अपना घर तेरा ससुराल है, पति का घर तुम्हारे सास-ससुर, तुम्हारे माता-पिता हैं। वहां तुम्हारे देवर-जेठ, ननंद वे ही तुम्हारे भाई-बहन हैं। इन सभी को अपना समझ कर संभालना।

“माता-पिता का घर तो बेटी के लिये तालीमशाला (स्कूल) है” पति का घर ही उसका अपना घर है। आज से तुम पर हमारा कोई अधिकार नहीं है। ससुराल से मायके नहीं आ सको तो जिद मत करना। अब हमारे पास आकर हमें संभालना तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है। अब तुम्हारे पति और उस परिवार का ध्यान रखना ही तुम्हारी जिम्मेदारी है। कभी तुम्हारी माँ और तुम्हारी सास दोनों एक साथ ही एक ही समय बीमार हो तो सास को अकेला छोड़कर जिद कर माँ की तबियत पूछने ेरी सेवा में लिए मत आना और अपने ही किये गए कर्म के उदय से उत्पन्न होने वाली विपरीत स्थिति से घबरा कर, कायर बनकर या पति से झगड़ा करके मेरे दरवाजे पर मत आना बल्कि किसी भी परिस्थिति का सामना, सच्ची समझ, संयोगों का समायोजन करके समभाव से निबटारा करना। मेरे घर आना हो तो पति की सहमति लेकर ही आना, झगड़ा करके आएगी तो मेरे घर के और मेरे दिल के दरवाजे बंद ही मिलेंगे। मेरा मन उस समय तुझे नहीं स्वीकारेगा, यह माँ तेरे जीवन के विकास के लिए जितनी कोमल है, उतनी ही तेरे हित के लिए कठोर भी है। तन-मन-धन से तुझे सहायता करके तेरा जीवन सदा सुखी बने। यही देखने की मेरी इच्छा है। तेरे जीवन में दुःख आये, जीवन बर्बाद हो इसमें मैं तेरा कभी भी साथ नहीं दूँगी। तेरे लिए यही सन्देश है की जीवन में कितनी भी मुश्किलें आए स्नेह, सेवा और समर्पण की भावना से उनका सामना करना।

शूरवीर पुरुषों की जन्मभूमि में तुम्हारा जन्म हुआ है। तुम हिन्दुस्तान की आर्य नारी हो। श्री राम, श्री कृष्ण, श्री महावीर स्वामी, श्री गौतम बुद्ध जैसे महान पुरुषों की जन्मदात्री भी आर्य स्त्री थी। अतः बेटी तुम भी उनकी जैसी बनना। तुम्हारे घर को मंदिर जैसा पवित्र स्थान बनाना, जिस पर भगवान की कृपा तुम पर सदा बनी रहे। अपने मन-मंदिर में पति रुपी भगवान की स्थापना कर भगवान की तरह उन्हें आग्रह कर भोजन कराना, उन्हें प्रिय वाणी से नहलाना और प्रेम की लोरी गाकर सुनाना। अपनी गृहस्थी को प्रेम, निष्ठा, सेवा भावना से संभालोगी तो कोई भी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकेगा। पति से रूठना, घर में क्लेश करना, बेकार की जिद करना, झूठे प्रेम के आवेश में घर छोड़ना, यह करके मेरे दरवाजे पर मत आना वरना मेरे दिए संस्कार, शिक्षा बेकार हो जाएगी, मेरा स्वप्न टूट जाएगा।

मन और क्रोध के परमाणु ज्यादा होने से पुरुष अवतार मिलता है और मोह और कपट कर परमाणु ज्यादा होने पर स्त्री अवतार मिलता है। पुरुष की मान-हानि होती है तो वह क्रोध करता है। और क्रोध अपने साथ-साथ दूसरों को भी जलाता है, अतः ऐसे स्नेह की ठंडक से क्रोधाग्नि पर पानी छिटकने का कार्य करना चाहिए। बड़े-बड़े लुटेरे, व्यसनी पतिदेवों का ह्रदय परिवर्तन करके उन्हें स्नेह द्वारा सही रास्ते पर लाने की शक्ति स्त्री में रही हुई है और अच्छे भले सुखी संसार को आग लगाकर पतन के रास्ते पर लाकर खड़ा कर देने वाली भी स्त्री ही है। आर्य संस्कारों से शक्ति का गलत उपयोग करने के बजाय सही उपयोग कारण तो स्त्री और उसका कुटुंब इस विश्व का आदर्श कुटुंब बन सकता है।

जीवन में पति और धर्म को आगे रखना। जिंदगी में ऐसा कोई गलत कार्य या निर्णय न लेना जिसके छींटे पूरे परिवार पर उड़ें और उसके विपरीत परिणाम सभी को भुगतने पड़ें। बेटी मेरी आँखें तेरे दुःख के आंसू देखना नहीं चाहती बल्कि कुटुंब से लेकर विश्वभर के कुटुंब के लिए उछालते सागर को देखना चाहती है। बेटी तुमसे मैं ऐसी उम्मीद करती हूँ। माँ की यह आशीष सुनकर बेटी व दामाद अहोभाव के साथ माँ के चरणों में आशीर्वाद लेने के लिए झुक गए और माँ को आदर्श पति-पत्नी बनने का वचन दिया, संकल्प लिया।